



नई दिल्ली/इस्लामाबाद:
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ 64 साल पुरानी सिंधु जल संधि को स्थगित करने का बड़ा फैसला लिया है। इस हमले के पीछे पाकिस्तान के आतंकी संगठनों की भूमिका सामने आने के बाद भारत ने साफ संकेत दिया है कि अब वह “आतंक और बातचीत” को साथ नहीं चलने देगा।
भारत का सख्त संदेश:
भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अब पाकिस्तान को उन नदियों का पानी नहीं देगा, जिससे वह भारत के खिलाफ ही साजिशें रचता है। भारत का यह फैसला पाकिस्तान की जल आपूर्ति व्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।
क्या है सिंधु जल संधि?
1960 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई यह संधि अब तक दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का आधार रही है।
इस समझौते के तहत:
भारत को रावी, व्यास, सतलुज (पूर्वी नदियाँ) का जल
पाकिस्तान को चिनाब, झेलम और सिंधु (पश्चिमी नदियाँ) का जल
प्रदान किया गया था।
भारत का आरोप:
भारत का कहना है कि पाकिस्तान ने बार-बार इस संधि का दुरुपयोग किया है। विवादों को सुलझाने के लिए जो प्रक्रिया संधि में निर्धारित की गई है, उसे नजरअंदाज कर पाकिस्तान ने सीधे अंतरराष्ट्रीय अदालत का रुख किया, जो संधि के नियमों का उल्लंघन है।
पाकिस्तान की बेचैनी:
भारत के इस कदम से पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है। पाकिस्तानी मीडिया और सरकार इसे “युद्ध के समान” बता रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत पश्चिमी नदियों का जल रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाता है, तो यह पाकिस्तान के लिए आर्थिक और सामाजिक संकट का कारण बन सकता है।
निष्कर्ष:
भारत का यह फैसला ना सिर्फ पाकिस्तान को उसकी हरकतों का जवाब है, बल्कि यह एक रणनीतिक जल कूटनीति का भी हिस्सा बनता दिख रहा है। आने वाले दिनों में यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक गूंज सकता है।