14 साल के लंबे अंतराल के बाद 109वां एनकाउंटर किया गया। इससे पहले आखिरी ‘एनकाउंटर’ तीन जुलाई 2009 को हुआ था। हालांकि, यह फर्जी साबित हुआ था। इस मामले में 18 पुलिसवालों को सजा सुनाई जा चुकी है।
तब से पुलिस एनकाउंटर से बचती चली आ रही थी।
अभिनव कुमार के डीजीपी बनते ही उम्मीद जगी थी कि पुलिस इस काले अध्याय से बाहर निकलकर फिर एनकाउंटर शुरू कर सकती है। उनके डीजीपी बनने के चार महीने बाद यह सच साबित हो गया। तीन जुलाई 2009 को अमित सिन्हा के एसएसपी रहते दून पुलिस ने लाडपुर में रणवीर का ‘एनकाउंटर’ किया था।
यह फर्जी निकला था। एमबीए के छात्र रणवीर को पुलिस ने साथ ले जाकर मार दिया था। पुलिस पर यह कालिख लगने के बाद उत्तराखंड में एनकाउंटर का दौर बंद हो गया। 2009 के बाद अब तक कुछ मौकों पर पुलिस मुठभेड़ जरूर हुई। पर, बदमाशों के पैरों में ही गोली मारी गई।
ताजा मामले से पहले प्रदेश में पुलिस ने 108 एनकाउंटर किए थे। अभी तक एक साल के भीतर 2003 में सबसे अधिक ग्यारह एनकाउंटर हरिद्वार जिले में किए गए। इसके बाद दूसरा नंबर भी हरिद्वार पुलिस का है।
देहरादून जिले में राज्य स्थापना से लेकर रणवीर हत्याकांड तक कुल 22 एनकाउंटर पुलिस ने किए हैं। राज्य में 2001 में कोश्यारी सरकार के दौरान एनकाउंटर में तेजी आई थी।