Motivational Quotes : दिल से निकलने वाले शब्द ही दिल में प्रवेश करते हैं- जलालुद्दीन रूमी
उदास मन में जोश भरने के लिए आसमान में उड़ता अकेला पंछी भी उम्मीद देने के लिए काफी है, नहीं तो बड़ी से बड़ी बात भी पानी की तरह बह निकलती है, असर नहीं करती. कभी-कभी किसी महापुरुष की एक पंक्ति भी अंधेरे जीवन में उजाला भर देती है और कभी-कभी पूरी किताब भी बेअसर साबित होती है. ‘रूमी’ यानी कि ‘मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी’ फारसी साहित्य के वो महत्वपूर्ण लेखक रहे हैं, जिनके शब्दों ने दुनिया भर के लोगों को अलग-अलग रूपों में प्रेरणा दी है. आपके जीवन में भी अगर कुछ खो गया है, कहीं कोई अधूरापन है, भीड़ में भी आप अकेले हैं, सही होने के बावजूद भी दुनिया आपको गलत समझती है, और इन सबके चलते आप कन्फ्यूज़्ड हैं, सही और गलत में फरक नहीं महसूस कर पा रहे और लाख कोशिशों के बाद भी एक उदासी ने आपको चारों ओर से घेरा हुआ है, तो रूमी के कोट्स कारगर साबित हो सकते हैं.
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रूमी का जन्म फारस देश के प्रसिद्ध नगर बल्ख़ में सन् 604 हिजरी में हुआ था. रूमी के पिता शेख बहाउद्दीन अपने समय के अद्वितीय पंडित थे जिनके उपदेश सुनने और फतवे लेने फारस के बड़े-बड़े अमीर और विद्वान आया करते थे. रूमी का मूल नाम जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी था और इनके दादा शेख़ हुसैन भी सूफ़ी थे.
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रूमी ने पिता के विद्वान शिष्य सैयद बरहानउद्दीन से शिक्षा प्राप्त की. पिता की मृत्यु के बाद रूमी दमिश्क और हलब के विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए चले गए, जहां से वह लगभग 15 साल बाद वापस लौटे. उस समय उनकी उम्र चालीस साल की हो गयी थी.
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रूमी के जीवनकाल में ही उनकी विद्वत्ता इतनी ज्यादा प्रसिद्ध हो गयी थी कि दूर-दूर से लोग उनके दर्शन करने और उपदेश सुनने आया करते थे. रूमी जब तक जीवित रहे उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से रात-दिन लोगों को सन्मार्ग दिखाने और उपदेश देने का काम किया.
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रूमी विश्व के सर्वाधिक पढ़े और पसंद किए जाने वाले सूफ़ी शायर हैं. रूमी के लेखन में रचनात्मक और भावनात्मक रस का प्रवाह इतना बेजोड़ है कि इसकी बराबरी आज-तक कोई सूफ़ी शायर नहीं कर पाया.
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रूमी की रचनाओं का संग्रह (दीवान) ‘दीवान-ए-शम्स’ पूरी दुनिया में मशहूर है. रूमी के जीवन में शम्स तबरीज़ी का महत्वपूर्ण स्थान है, जिनसे मिलने के बाद रूमी की शायरी को रंग और नज़रिया मिला.
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रूमी की कविताओं में प्रेम और ईश्वर की भक्ति का सुंदर मिश्रण है. इसलिए उनके लेखन को प्रेम, हुस्न और ख़ुदा से जोड़ कर देखा जाता है.
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भारत में अंग्रेज़ी शासनकाल के दौरान रूमी पर दो प्रमुख काम हुए जिनमें पहला हज़रत शिबली नोमानी और दूसरा मौलाना अशरफ़ थानवी का है. अशरफ़ थानवी ने मसनवी की शरह छह भागों में प्रकाशित की. मौलाना रूमी की मसनवी कहानियों का पिटारा है.
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मौलाना रूमी के तीन ग्रंथ मशहूर हैं, जिनमें मसनवी, दीवान एवं फ़िही मा फ़िही (यह मौलाना के उपदेशों का संग्रह है) शामिल हैं. आपको बता दें, कि रूमी की मसनवी को क़ुरआन का दर्ज़ा प्राप्त है.
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अपने जीवन के आख़िरी दिनों में रूमी काफ़ी कमज़ोर और रोगग्रस्त हो गए. उनके उपचार में कोई कसर न छोड़ी गयी, लेकिन मृत्यु ही अंतिम सत्य है और सन 1273 ई. में मौलाना रूमी दुनिया से कूच कर गए. गौरतलब है, कि उनको अपने पिता की कब्र के समीप ही खाक़ के सिपुर्द किया गया.
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