उत्तराखंड में वनाग्नि पर नियंत्रण के लिए तेज़ी से प्रयास, पिरुल के दाम बढ़े, जागरूकता अभियानों का असर

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प्रदेश में गर्मी बढ़ने के साथ ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। उत्तराखंड वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक (HOFF) डॉ. धनंजय मोहन ने जानकारी दी कि वनाग्नि से बचाव के लिए विभाग हरसंभव कदम उठा रहा है।

डॉ. मोहन ने बताया कि इस समय जंगलों में पिरुल (चीड़ के पेड़ की सूखी पत्तियां) गिरने का मौसम है, जो आग पकड़ने का मुख्य कारण बनती हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए सरकार ने पिरुल खरीद दर को तीन रुपए से बढ़ाकर दस रुपए प्रति किलो कर दिया है। इससे न सिर्फ स्थानीय लोगों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि पिरुल के संग्रहण से जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी कम होंगी।

वन विभाग ने इस सीजन में अब तक पांच हजार से ज्यादा जागरूकता अभियान चलाए हैं। इसके साथ ही ‘शीतलाखेत मॉडल’ को बढ़ावा दिया जा रहा है, जहां स्थानीय लोगों ने पिछले दस वर्षों से अपने जंगलों को आग से सुरक्षित रखा है। अन्य जिलों के निवासियों को भी इस मॉडल का अध्ययन कराने के लिए शीतलाखेत भेजा गया ताकि वे अपने क्षेत्रों में भी इसी तरह के प्रयास कर सकें।

डॉ. मोहन ने यह भी बताया कि जब तक पेड़ों से सूखे पत्ते गिरते रहेंगे, सड़क किनारे कंट्रोल बर्निंग (नियंत्रित तरीके से छोटी आग जलाकर) का सिलसिला जारी रहेगा ताकि बड़े पैमाने पर आग लगने से बचा जा सके।

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