ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की हालत पस्त, सिंधु जल पर भारत से चाहता है समझौता!

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पहल्गाम में हिंदू श्रद्धालुओं पर हुए बर्बर आतंकी हमले के बाद भारत ने न केवल कड़े शब्दों में विरोध जताया, बल्कि पाकिस्तान को सीधे उसके ही मैदान में चुनौती दी। भारत ने जहां पहले डिप्लोमैटिक स्तर पर पाकिस्तान को घेरा, वहीं उसके बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों और 11 एयरबेस को निशाना बनाकर करारा जवाब दिया।

इस सख्त और अप्रत्याशित सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की हालत नाजुक हो गई। वह अब युद्धविराम और डी-एस्कलेशन के लिए भारत से गुहार लगा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान, जो अब तक सिंधु जल समझौते को लेकर सख्त रवैया अपनाए हुए था, अब उसी समझौते पर पुनर्विचार और बातचीत के लिए खुद आगे आ गया है।


साल 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह समझौता हुआ था। इसके तहत सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का पानी पाकिस्तान को और ब्यास, रावी व सतलज का पानी भारत को दिया गया। पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था और पीने के पानी की आपूर्ति largely इन्हीं नदियों पर निर्भर है।

भारत ने आतंकियों को सबक सिखाने के लिए इस समझौते को निलंबित कर दिया था। इसका असर यह हुआ कि पाकिस्तान में पानी की कमी से त्राहिमाम की स्थिति बन गई। खेत सूखने लगे, और बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ा।


भारत की सैन्य कार्रवाई और जल कूटनीति के दोहरे वार से पाकिस्तान को एहसास हुआ कि भारत अब पुराने ढर्रे पर नहीं चलेगा। पाकिस्तान ने हाल ही में पत्र लिखकर भारत से अनुरोध किया है कि वह सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले पर पुनर्विचार करे। इसके साथ ही, वह डिस्प्यूट मैकेनिज्म पर बातचीत के लिए भी तैयार हो गया है, जो पहले संभव नहीं दिखता था।


भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति और आक्रामक डिप्लोमैसी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अब देश अपनी सुरक्षा और संसाधनों को लेकर किसी भी समझौते पर पुनर्विचार करने में पीछे नहीं हटेगा। पाकिस्तान का रुख बदलना इसकी सबसे बड़ी मिसाल है।

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