Opinion: सांस्कृतिक नवाचार के महानायक हैं नरेंद्र दामोदरदास मोदी

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1857 की क्रांति असफल हो चुकी थी, जातियों के बीच बटे भारत में भेदभाव इस कदर हावी था कि सबको एक मत पर एकत्रित करना लगभग लगभग असंभव था. ऊपर से अंग्रेज बहुत चालाक थे, “किसे अपने साथ मिलाना है और किसे निपटाना है” इस कला में उन्हें महारथ थी. राजनीतिक हो या सामाजिक, हर सभा उन्हीं के इशारे पर होती थी. ऐसे में भारत को स्वतंत्रता कैसे मिलेगी क्योंकि राष्ट्र तो तब आज़ाद होगा ना जब भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना पनपेगी. ये सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जगाया कैसे जाये! उस वक्त प्रखर राष्ट्रवादी नेता और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लोकमान्य लोकप्रिय बाल गंगाधर तिलक “गणेश उत्सव” की योजना के साथ सामने आये. मराठा परिवारों में कुलदेवता गणपति की पूजा घर में ही होती थी. तिलक ने इसे सामाजिक उत्सव में बदल दिया ताकि सभी देशवासियों को एक छत्र के नीचे लाकर उनमें राष्ट्रीयता का बोध पैदा किया जाए.

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बिना देश वैसा ही है जैसे आत्मा बिना शरीर. धर्म, भाषा, साहित्य, भोजन, त्योहार, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पर्यटन जैसे तमाम कारकों से मिलकर संस्कृति बनती है जिसमें अपनत्व की भावना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को जन्म देती है. भारत इतना सौभाग्यशाली है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इतनी विविधता होने के बावजूद सब के सब एक ही संस्कार के धागे से बंधे हुए हैं. किसी भी देश के विकास और उत्थान के लिए उसकी सांस्कृतिक विरासत सबसे अहम नींव है. हजारों साल की हमारी सभ्यता और संस्कृति की डोर ही कुछ ऐसी है कि कितने ही झंझावात आएं, लेकिन हम अटूट रहे. भारतीयता हमारी रगों में है और हमारी एकजुटता ही हमारे पुनर्निर्माण का सबसे बड़ा कारक. इसीलिए “एक भारत श्रेष्ठ भारत” के ध्येय के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्पूर्ण भारत को संस्कृति के धागे से पिरोने में जुटे हुए हैं.

आज अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर का निर्माण हो या फिर केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर हो या महाकाल का महालोक, चारधाम परियोजना हो जम्मू-कश्मीर में मंदिरों का जीर्णोद्धार या फिर 500 साल बाद पावागढ़ के माता मंदिर में ध्वज पताका लहराना हो, भारतीय संस्कृति और सभ्यता के केंद्र फिर से अपना पुराना वैभव अर्जित कर रहे हैं. बीते कुछ दिनों से आपने गौर किया होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सोशल मीडिया पर भजन रिपोस्ट कर रहे हैं. फिर वो चाहें स्वाति मिश्रा हो या फिर जुबिन नौटियाल या फिर स्वस्ति मेहुल. संस्कार और संस्कृति के हर पहलू को मोदी समझते हैं. दरअसल, नरेंद्र मोदी जनता के नेता हैं और राजनीति की शुष्कता से दूर रहते हैं. राजनीति में सक्रिय होने से पहले एक स्वयं सेवक और प्रचारक के तौर पर मोदी लगभग पूरे भारत का भ्रमण कर चुके थे. इसीलिए वो हर राज्य की संस्कृति को समझते हैं और किसी भी राज्य या क्षेत्र वो जाएं, वहां के “कल्चर से तुरंत कनेक्ट” हो जाते हैं.

बीते वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुवाहाटी के सुरसजई स्टेडियम में दस हजार से अधिक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत रंगारंग बिहू कार्यक्रम देखा, तो कर्नाटक के कुलबर्गी में उन्होंने ढोल बजाया था. कुछ फैसले ऐसे होते हैं जिनका असर दीर्घकालिक होता है. जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 2023 में निर्णायक मंडल ने सर्वसम्मति से गीता प्रेस, गोरखपुर को ‘गांधी शांति पुरस्कार’ के लिए चुना. ये सनातन संस्कृति को घर-घर पहुंचाने के प्रयास का सम्मान है. साथ ही सम्मान हुआ है 14 भाषाओं की सतत सेवा का. सम्मान हुआ है, करोड़ों प्रकाशित पुस्तकों का. सम्मान हुआ है गीता के ज्ञान और रामचरितमानस की लगातार 100 सालों से की जाने वाली सेवा का.

भारतीय इतिहास की दो सबसे पुरानी भाषा संस्कृत और तमिल को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सजग रहे हैं. ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि “भारत का प्राचीन ज्ञान हजारों वर्षों तक संस्कृत भाषा में ही संरक्षित किया गया है. योग, आयुर्वेद और दर्शन जैसे विषयों पर शोध करने वाले लोग अब ज्यादा से ज्यादा संस्कृत सीख रहे हैं”. केंद्र सरकार वेद विद्या को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जल्द ही महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान के पांच क्षेत्रीय केंद्र द्वारका (गुजरात), रामेश्वरम (तमिलनाडु), जगन्नाथ पुरी (ओडिशा), बद्रीनाथ (उत्तराखंड) और गुवाहाटी में मां कामाख्या देवी में स्थापित हो रही हैं. साथ ही तमिल भाषा के प्रचार-प्रसार में भी प्रधानमंत्री के प्रयास उल्लेखनीय हैं. तिरुचिरापल्ली में भारतीदासन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में मोदी ने अपने भाषण की शुरूआत तमिल भाषा से की. पूरे भाषण में अग्रेजी शब्दों के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने तमिल भाषा का इस्तेमाल किया. संसद में पवित्र सेंगोल की स्‍थापना हो या फिर प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में उनके मार्गदर्शन से हो रहा ‘काशी तमिल संगमम्’ कार्यक्रम ‘एक भारत श्रेष्‍ठ भारत’ के विचार को निरन्‍तर सुदृढ़ बना रहा है.

भारतीय संस्कृति के विविधता और वैभव को पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत करने का एक बड़ा अवसर G20 की अध्यक्षता के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिला. भारत की सांस्कृतिक विरासत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, जो धर्म, कला, परंपराओं का एक अनूठा समृद्ध संगम है. G20 बैठकों के जरिये मोदी सरकार ने भरपूर प्रयास किया कि हम अपने अतिथियों को हजारों वर्षों के दौरान विकसित हुई अनेक प्रकार की कला, वास्तुकला, चित्रकला, संगीत, नृत्य, पर्वों और रीति-रिवाजों से परिचित करा सकें. प्रधानमंत्री G20 की बैठकों को दिल्ली, मुंबई की सीमा से निकाल कर पूरे भारत में आयोजित करवाया.

वाराणसी में संस्कृति कार्य समूह की बैठक हुईं तो व्यापार और निवेश पर बैठक जयपुर में हुई. स्वास्थ्य कार्य समूह की बैठक के लिए प्रतिनिधि गांधीनगर में जुटे. गोवा, हम्पी, गुरुग्राम, पुणे, महाबलीपुरम, खुजराहो, रांची, उदयपुर, हैदराबाद, ऋषिकेश, श्रीनगर, भुवनेश्वर, गुवाहाटी, सिलीगुड़ी, अमृतसर समेत भारत के कई व्यावसायिक और सांस्कृतिक केंद्र ना केवल G20 के मेजबान बने बल्कि अपनी कला और संस्कृति से उन्होंने विश्व को परिचित भी करवाया. शिखर सम्मलेन के लिए आने वाले अतिथियों को हमारी कला-संस्कृति से परिचित होने का भरपूर अवसर मिला. राजधानी दिल्ली के एयरपोर्ट से निकलते ही शीर्ष राष्ट्राध्यक्षों को यक्ष-यक्षिणी की नमस्कार मुद्रा में लगी प्रतिमाएं मिलीं तो भारत मंडपम के गेट के बिल्कुल सामने तमिलनाडु के स्वामीमलाई जिले के शिल्पकारों द्वारा तैयार भगवान शिव के नटराज स्वरूप की अष्टधातु अलौकिक मूर्ति दिखी. सबसे दिलचस्प क्षण वो रहे जब भारत मंडपम् में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत कर रहे थे. प्रधानमंत्री के पीछे ओड़िशा के कोणार्क सूर्य मंदिर और नालंदा विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक तस्वीरें लगी हुई थीं जिनके बारे में वो स्वयं मेहमानों को जानकारी दे रहे थे.

2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत समारोह अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम में हुआ. सितंबर, 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने भारतीय दौरे पर सबसे पहले अहमदाबाद गए जबकि अक्टूबर, 2019 में जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूनेस्को की वैश्विक धरोहर सूची में शामिल तमिलनाडु के मामाल्लापुरम में मिले. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों जब भारत आए, तब वह भी वाराणसी और मिर्जापुर गए थे. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिस ट्रूडो जब भारत दौरे पर आए थे, तब उन्होंने दिल्ली के अलावा अमृतसर का दौरा करते हुए गोल्डन टेंपल में माथा टेका था. ट्रूडो इसके अलावा वह गुजरात के साबरमती आश्रम और मुंबई में गए थे. 2018 में साउथ कोरिया की फर्स्ट लेडी किम जुंग सूक ने मुख्य अतिथि के तौर पर अयोध्या में दीपवाली मनाई. जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की गंगा आरती की तस्वीरें अब भी स्मृतियों में हैं. मोदी-आबे की वाराणसी में हुई ये मुलाक़ात काशी-क्योटो सम्बन्ध के तौर पर बहुत चर्चित रही. तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अहमदाबाद में प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे.

ऐसा नहीं है कि इन अति विशिष्ट लोगों के दौरे दिल्ली से बाहर ऐसे ही रख दिए जाते हैं. देश का अतीत, वर्तमान में भी सुन्दर और प्रभावशाली लगे, इसके लिए महती प्रयास भी हो रहे हैं. कोणार्क का सूर्य मंदिर, मदुरई का मीनाक्षी मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, मोढेरा सूर्य मंदिर, कांचीपुरम में वरदराजा पेरुमल मंदिर जैसी अलौकिक धरोहरों के बीच अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, काशी में बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन में महालोक कॉरिडोर, चारधाम कॉरिडोर, केदारनाथ धाम का पुनर्विकास, पवित्र डेरा बाबा नानक-करतारपुर साहिब कॉरिडोर के रूप में भारत का सांस्कृतिक वैभव एक नया आयाम ले रहा है. इसके अतिरिक्त रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट, तीर्थंकर सर्किट समेत 15 पर्यटन सर्किट भी बन रहे हैं. पुराने वैभव को फिर से वही स्थान दिलाना इसीलिए भी आवश्यक है क्यूंकि भारतीय सनातन परंपरा ना तो शकों हूणों गजनवी, गोरी, तैमूर, औरंगजेब, नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली जैसे आक्रान्ताओं के कहर से टूटी और ना ही धर्मान्तरण के कुचक्र और प्रलोभन उसे पिघला सके.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

Tags: Narendra modi, PM Modi

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